प्रिय पाठकों,
यहाँ हम आप को प्राचीन भारत के इतिहास
से सम्बंधित प्रागैतिहासिक काल के सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं
l रेलवे भर्ती परीक्षा के दृष्टि से यह विषय आपके लिए काफी उपयोगी होगी l
प्राचीन भारत
प्राचीन भारत के इतिहास का उस समय के
लोगो द्वारा प्रयोग किये जाने वाले पत्थरों/धातुयों के आधार पर पाषाण काल,
मध्य पाषाण, नवपाषाण और ताम्रपाषाण युग के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है l
20 लाख साल (2 मिलियन वर्ष) पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप में थे आदि मानव (होमो
इरेक्टस) निवास करते करते थे और 70,000 ई.पू. होमो सेपियन्स निवास करते थे
l यह एकत्र होकर शिकार किया करते थे l भारतीय उपमहाद्वीप की प्रथम निवासी
नागा (उत्तर-पूर्व), संथाल (भारत-पूर्व), भील (सेंट्रल भारतीय), गोंड (मध्य
भारत), टोडा (दक्षिण भारत) आदि की तरह आदिवासियों गया हो सकते है, विड़ और
आर्य उप-महाद्वीप में बाद में आये, जिन्हें आप्रवासियों माना जाता है।
पाषाण काल अवधि (2 लाख ईसा पूर्व - 10,000 ईसा पूर्व)
आग,
उपकरण, चूना पत्थर का बना हुआ है
शुतुरमुर्ग के अंडे,
महत्वपूर्ण पाषाण काल साईट : भीमबेटका (मध्य प्रदेश), हुन्स्गी कुरनूल गुफाएं, नर्मदा घाटी (हथनोरा, मध्य प्रदेश), क्लादगी बेसिन
मध्य पाषाण काल (10,000 ईसा पूर्व - 8000 ई.पू.)
प्रमुख जलवायु परिवर्तन इसी काल में हुए l
धरेलू जानवरों के पालन शुरू हुआ
ब्रह्मगिरि (मैसूर), नर्मदा, विंध्य, गुजरात में इसके साक्ष्य मिले हैं l
नवपाषाण काल (8000 ई.पू. - 4000 ई.पू.)
कृषि की शुरुआत
पहिये की खोज
इनामगाँव = प्रारंभिक गांव
महत्वपूर्ण नवपाषाण साइटें :
बुर्ज़ाहोम (कश्मीर), गुल्फ्रल (कश्मीर), मेहरगढ़ (पाकिस्तान), महाग्र (उत्तर
प्रदेश), चिरांद (बिहार), दोजली हडिंग (त्रिपुरा/असम), कोल्दिहवा (उत्तर
प्रदेश), महगारा (उत्तर प्रदेश), हलपुर (आंध्रप्रदेश), पैयाम्पल्ली
(आंध्रप्रदेश), मसकी कोदेकल, संगना कलर, उतनुर, तक्कला कोटा l
ताम्र युग : (4000 BC – 1,500 BC)
ताम्र युग, इसे कांस्य युग भी माना जाता है l (कांस्य = ताम्र + टीन)
संस्कृतियों ब्रह्मगिरि, नेवादा टोली (नर्मदा क्षेत्र), महिषादल (पश्चिम बंगाल), चिरांद (गंगा क्षेत्र)
लौह युग (ईसा पूर्व 1500 - 200 ई.पू.)
वैदिक काल (। - ईसा पूर्व 600 यानी
ईसा पूर्व 1600 आर्यों के आगमन), लगभग 1000 साल (हिंदू धर्म के मूल
पुस्तकें, वेद जोकि बाद में लिखे गयें होंगे) -
पूर्व वैदिक काल (1000-600 ईसा पूर्व)
- पूर्व वैदिक काल-यह PGW (Painted Grey Ware)- लौह युग
- ये दो सागरों के विषय में जानते थे-अरब सागर और हिन्द महासागर l
- गंडक सदानीरा (Sadanira) के रूप में जाना जाता था
- महिलाओं की स्थिति ठीक नहीं थी
- चार आश्रम और जीवन की चार अवस्थायों के विषय में विवरण जबाला उपनिषद् में मिलता है l
समाज
आठ प्रकार के विवाह विधान थे
1. ब्रह्मा : एक ही वर्ण में विवाह वैध था l
2. देवा (Daiva) : पिता ने शुल्क के एक भाग के रूप में पुजारी को अपने बेटी देता था l
3. अरसा (Arsa) : एक गाय और एक बैल की कीमत दहेज के रूप में दिया जाती थी l
4. प्रजापति : बिना दहेज़ के किया गया विवाह l
5. गंधर्व: आधुनिक प्रेम विवाह के अनुरूप दो दलों की सहमति से।
6. असुर: खरीद से विवाह
7. राक्षस: कब्जा से विवाह
8. पैशाचा (Paishacha) : मानसिक रूप से विक्षिप्त या नशे की हालत में किसी लड़की से विवाह करना l
वर्ण के आधार पर विवाह
1. अनोलुमा (Anuloma) : किसी व्यक्ति का अपने वर्ण या उससे निम्न वर्ण में शादी करना l
2. प्रतिलोम : अपने वर्ण से नीचे की लड़की से शादी करना
राज्यव्यवस्था
'राष्ट्र' का प्रयोग सबसे पहले इस अवधि में किया गया l
अर्थ शास्त्र : चावल को व्रीही कहा जाता था l
- -निक्ष, सत्माना, क्र्सनाला-जैसी इकाइयों को प्रयोग मूल्य ज्ञात करने के लिए जाता है, उस समय सिक्कों को चलन नहीं था
मिट्टी के चार प्रकार बर्तन
- काले और लाल बर्तन
- काले और चिकने बर्तन
- भूरे रंग की चित्रकारी
- लाल रंग की चित्रकारी
धर्म
प्रजापति (निर्माता) सर्वोच्च स्थान पर था l
- रुद्र और विष्णु ने उनकी स्थिति प्राप्त की
वेद : पहले तीन वेदों को तराई कहते थे l
ऋग्वेद - यह सबसे प्राचीन वेद है। इसमें देवताओं के गुणों का वर्णन और प्रकाश के लिए मन्त्र हैं - सभी कविता-छन्द रूप में ।
सामवेद - इसमें यज्ञ में गाने के लिये संगीतमय मन्त्र हैं।
यजुर्वेद - इसमें कार्य, यज्ञ की प्रक्रिया के लिये गद्यात्मक मन्त्र हैं।
अथर्ववेद - इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, यज्ञ के लिये कवितामयी मन्त्र हैं
उपनिषद
उपनिषद (रचनाकाल 1000 से 300 ई.पू.
लगभग) कुल संख्या 108। भारत का सर्वोच्च मान्यता प्राप्त विभिन्न दर्शनों
का संग्रह है। इसे वेदांत भी कहा जाता है। उपनिषद भारत के अनेक दार्शनिकों,
जिन्हें ऋषि या मुनि कहा गया है, के अनेक वर्षों के गम्भीर चिंतन-मनन का
परिणाम है। उपनिषदों को आधार मानकर और इनके दर्शन को अपनी भाषा में
रूपांतरित कर विश्व के अनेक धर्मों और विचारधाराओं का जन्म हुआ। उपलब्ध
उपनिषद-ग्रन्थों की संख्या में से ईशादि 10 उपनिषद सर्वमान्य हैं। उपनिषदों
की कुल संख्या 108 है। प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, माण्डूक्य,
तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, कौषीतकि, मुण्डक,
प्रश्न, मैत्राणीय आदि।
वेदांग
- शिक्षा (फोनेटिक्स)
- कल्पा (कर्मकांडों विज्ञान)
- ज्योतिष (खगोल)
- व्याकरण
- निरुक्त (व्युत्पत्ति)
- छंद (मैट्रिक्स)
उपवेद
- आयुर्वेद
- धर्नुर्वेदा
- गन्धर्ववेदा
- शिल्पा वेद